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About The Book
Description
Author
शुभेन्द्र अमरीका में एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के सीईओ की हैसियत से काम करने वाला ब्राह्मण नौजवान था। कहने की ज़रूरत नहीं कि उसकी ज़िन्दगी में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी। वह एक शानदार जिन्दगी जी रहा था। लेकिन फिर एक दिन अचानक सबकुछ बदल गया। उसके हाथ चाणक्य की जीवनी लग गयी जिसे पढ़कर वह बुरी तरह आंदोलित हो उठा। प्राचीन भारत में ब्राह्मणों के गौरव को जानकार जहाँ उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था वहीं उनकी वर्तमान दुर्दशा को देखकर उसके ह्रदय में शूल सा चुभने लगा। अब उसे दिन-रात बस एक ही धुन सवार रहने लगी कि किसी भी तरह ब्राह्मणों के पुराने गौरव को वापस लाना है। धीरे-धीरे यह धुन संकल्प में बदल गई और उसने एक बहुत बड़ा व कठिन निर्णय ले लिया। उसने ब्राह्मण समुदाय के गौरव के पुनरुत्थान हेतु कार्य करने के लिए अपनी नौकरी अपना परिवार और ज़िन्दगी के सारे ऐश-ओ-आराम छोड़ दिए और भारत आ गया। यहाँ आकर उसने सर मुंडवा लिया शिखा व जनेऊ धारण कर लिए पेंट-शर्ट उतारकर धोती पहन ली और पैरों में जूतों की जगह लकड़ी की खड़ाऊँ डाल लीं। कंधे पर उसके हमेशा एक झोला टंगा रहने लगा जिसे वो ब्राह्मण समुदाय के प्रति अपने उत्तरदायित्व का प्रतीक मानता था। इस तरह वह चाणक्य / कौटिल्य के पुनराग- मन की घोषणा करता प्रतीत होने लगा। अब उसके जीवन का एक ही उद्देश्य था - ब्राह्मणों के पुराने गौरव को वापस लाना उन्हें पुनः ज्ञान के उसी शिखर पर विराजमान करना जिस पर बैठकर कभी वे सारी दुनिया को वेदों का ज्ञान बाँटा करते थे और जिसके चलते भारत भूमि को विश्व गुरु होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उसने तय किया कि वह पैदल पैदल ही पूरे भारत का भ्रमण करेगा और उसके सोए हुए ब्राह्मणत्व को पुनः जगाएगा। क्या शुभेन्द्र अपने इस पवित्र उद्देश्य में सफल हो सकेगा ?