हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण इस लघु-पुस्तिका की विषयवस्तु यूँ तो पूर्णतः काल्पनिक है मगर इसका अध्ययन करते हुए सुधि पाठकों के मन-मस्तिष्क में अपने आसपास के परिवेश के चित्रांकन के साथ-साथ वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम का जीवंत हो उठना भी स्वाभाविक है। अगर ऐसा होता है तो एक लेखक के तौर पर मैं अपने प्रयास को सफल समझूँगा। किसी के भी प्रति बिना किसी वैमनस्य या पूर्वाग्रह के मैंने अपनी बात कह दी है। किसी व्यक्ति विशेष दल विशेष या समुदाय विशेष की भावनाओं को आहत करना मेरा मकसद नहीं है। इसके बावजूद भी यदि कोई पाठक इस पुस्तक को पढ़कर आंतरिक या बाहरी रूप से उद्वेलित होता है तो मैं हाथ जोड़कर क्षमाप्रार्थी हूँ।
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