देखो गांधी जी के मारे थर-थर कांप रही सरकार। धरे रहे वाके तोप-तमंचा धरी रही तरवार।। (विजय-दुंदुंबी प्रतिबंधितः 10 दिसम्बर 1930) ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित दस्तावेजों में गांधी का उल्लेख होना स्वाधीनता की लड़ाई में उनके जन-मानस पर प्रभाव को रेखांकित करता है। जहां एक ओर क्रांतिकारियों का दल अंग्रेजों के साथ बल का प्रयोग कर रहा था वहीं पर शब्दों को अस्त्र बनाकर अनेक लघु पुस्तक व पुस्तिकाएं अंग्रेजों के खिलाफ प्रकाशित कर वैचारिक क्रान्ति का शंखनाद हो रहा था। इस ग्रंथ में लोक साहित्य की विभिन्न विधाओं का संचयन किया गया है। यह ग्रंथ स्वाधीनता संग्राम का जीवन्त दस्तावेज है। जिस मेहनत के साथ संपादक डॉ- राकेश पाण्डेय ने इन दस्तावेजों को शिनाख्त किया है उस कामयाब कोशिश ने यकीनन इस पुस्तक को इस बेशकीमती संदर्भ का एक प्रामाणिक दस्तावेज बना दिया है। जिज्ञासु पाठकों और शोधार्थियों के लिए इस किताब की कालजयी उपयोगिता और चिरंजीविता असंदिग्ध है। हिंदी की प्रख्यात पत्रिका ‘प्रवासी संसार’ के सम्पादक डॉ- राकेश पाण्डेय हिंदी भाषा प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में एक जाने-माने व्यक्तित्व हैं। प्रवासी हिंदी लेखन गांधी दर्शन और चिंतन भारतीय लोक साहित्य के एक गम्भीर अध्येता हैं। आपकी ‘गांधी और हिंदी’ पुस्तक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत सरकार द्वारा प्रकाशित है जो न्यास के उत्कृष्ट प्रकाशनों की श्रेणी में सम्मिलित है। आपकी पुस्तकें व पत्रिका अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सन्दर्भ ग्रंथ के रूप मे सम्मिलित है।
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