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About The Book
Description
Author
“किसी भी विषय को दो तरह से अभिव्यक्त किया जाता रहा है। एक सूत्रात्मक ड़ग से दूसरा विस्तार दे कर। पहली को “सुत्त“ व दूसरी को “गाथा“ कहा गया है। ये दो तरह की विधि समण संस्कृति में क्यों अपनाई जाती रही है ? किसी भी समाज में हमेशा से दो वर्ग रहे हैं। या यूं कहें व्यक्ति दो तलों में से होकर गुजरता है। साधारण व्यक्ति तो “गाथाओं“ के माध्यम से समझता रहा है। परन्तु समाज का बौद्धिक वर्ग सीधे सूत्रों को ही समझने में समर्थ रहा है। सम्राट असोक ने जो चौरासी हजार उपदेश शिलाओं पर अंकित करवाएं हैं वे सूत्रात्मक शैली में ही है। भगवान बुद्ध के उपदेशों को “गाथा“ ही नाम क्यों दिया गया है जबकि वे इतिहास हैं। इतिहास क्यों नहीं कहा गया उन्हें ? “गाथा“ और “इतिहास“ में क्या अन्तर है ? “गाथा“ को ही क्यों महत्व दिया गया है ?...“