इसके समाधान के लिए मैं मार्क्स व अम्बेडकर जी को आपस में जोड़ने के पक्ष में हूं। अम्बेडकर जी ने दो पहलुओं पर कार्य किया है। व्यवस्था के लिए उन्होंने संविधान की रचना की है। जैसे बुद्ध ने विनय की रचना की है। मन के परिवर्तन के लिए उन्होंने धम्म को आवश्यक माना है। आदमी जब तक धम्ममय नहीं होगा अर्थात मन से राजी नहीं होगा तब तक कोई भी व्यवस्था चल नहीं पाएगी। इन दोनों तत्वों (व्यवस्था +मन) के मिल जाने से ही मनुष्य जाति का भला होना सम्भव है।
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