इन कविताओं में लेखक ने किसी भी सच को कमीज नहीं पहनाई है। ना ही यह किसी एक विषय पर स्थिर है। यह भटकती हुई कविताएँ है जैसे कभी प्रेम के पीछे तो कभी प्रेम से दूर. कभी तो यह कविताएँ आनंद की यात्रा पर होगी तो कभी यह बीमार पड़ी एक बिस्तर पर ठिठुरते दिखाई देगी। कभी यह सीधे रास्तों पर चलती साफ नजर आएगी तो कभी उलझी पड़ी समझने में थोड़ी देर लगा देगी। कभी इसकी गूँज तुम्हे आँखो से देखनी पड़ जाएगी तो कभी इसका मौन तुम्हारे कानो पर लगातार पड़ते रहेगा। इन कविताओं में जीवन है। सुना हुआ देखा हुआ और जीया हुआ। इन सारे के सारे जीवन में से कुछ टहनियां और घास को इकट्ठा करके लेखक अपने हिस्से का तुम्हे यह घोंसला बेच रहा है
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