कल्पना की काव्य को अपने भाषा में पिरोकर जो चाय मैंने भावनाओं की धीमी आंच पर बनाई है । इस कविता में प्रेम में हुई छोटी मोटी नोकझोंक चाय की सोंधी महक का एहसास कराती है । मैं चाय की चुस्की लेकर हाथ में लग रही उस मीठी गर्माहट को महसूस कर और इस अनूठे नशे का आनंद लेकर मदहोश हो जाता हूं । कविता चाय पर पहली मुलाकात के साथ शुरू और चाय के साथ ही कविता का भावनात्मक तथा सुखद अंत होता है ।
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