मानस की कविताएँ अपने समय के तमाम भटकावों निराशा उगलते संदर्भों की ओर गहरी और सजग निगाह रखते हुए मनुष्य की अपनी खोज में जुटी नजर आती हैं। जो ठिकाना नहीं मिल रहा है उसे निरंतर खोजती हुईं। समय की विडम्बनाओं और हताशाओं से ये कविताएँ पलायन नहीं करतीं। समय के प्रति शिकायत दर्ज करती हुईं खुद से संवाद करने की प्रेरणा देती हैं। खुद की तलाश खुद का आकलन खुद से संवाद करने की राह प्रशस्त करती हैं। ‘आलाप’ जैसी कविता इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। निर्वासित जैसी कविताएँ ऐसी हैं जो उलझनों से निकल कर राहत का रचाव करती नजर आती हैं।---- दिविक रमेश
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