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About The Book
Description
Author
[मानते हुए कि कीरत ने जीउत से मिलने पर जो हुआ उसे अपनी पत्नी को नहीं बताया जीउत ने तो अपनी (नई) पत्नी को रूपमती के बारे में बताया ही होगा.] वह मिलना चाहती है सबसे. रूपमती से भी ? अपने विजय-दर्प के साथ ? जिस लिए भी मिलना होगा तो रूपमती के शरीर से भी मिलना होगा मन से भी. दो शुद्ध मनुष्यों का मिलन होगा वह. स्त्री-पुरुष का कवच काम नहीं करेगा. लेखक के लिए भी कोई विमर्श काम नहीं करेगा. यह यह यह... के संकेत से और यह यह यह.. के साथ रूपमती की आभासी विसंगति से पुरुष के रूप में जीयुत की संवेदना के लोप को समझा-समझाया जा सकता है. पर रूपमती को लेकर उस (नई ) की संवेदना के लोप का कोई बना-बनाया ढाँचा नहीं मिलेगा. तब दो निष्कवच मनुष्यों को ही समझना होगा. और वही शायद सबसे कठिन भी हो. उसी गुत्थी से तमाम विमर्श निकलते हैं और उसी को भूल जाते हैं..... गुत्थी की ओर बहुत संजीदगी और बहुत सब्र से क़दम-दर-क़दम बढ़ना क़ाबिले-तारीफ़ है। -●कमलाकांत त्रिपाठी●