इस ऐतिहासिक उपन्यास की कथा महाराष्ट्र के अतीत से संबंधित है जो अपने आंचल में उस समय के देशप्रेम शौर्य साहस और रक्षा-कौशल के प्रसंग समेटे हुए है।उपन्यास का आरंभ भयानक अँधेरी रात जंगल का सन्नाटा और नंगी तलवारों के साये में खून से लथपथ तानाजी से होता है; तथा अंत तोपों की गर्जन के साथ सिंहगढ़ के किले पर भगवा ध्वज फहराने व लाशों के ढेर से उनकी कंचन-काया को निकलने से होता है।उपन्यास में कौतूहल अंत तक बना रहता है और हमारी आँखों के सामने अतीत अपने उज्ज्वल रूप में चलचित्र की भाँति सरकता चला जाता है . . . मनुष्य के संकल्प। सजगता दृढ़ता और कर्तव्यपरायणता का एक भव्य चित्र है चट्टान।
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