आध्यात्मिक विकास भौतिक विकास के बाद का चरण है। पहले हो नहीं सकता। व्यक्तिगत रूप से हो सकता है एकाध आदमी कर सकता है। लेकिन बड़ी कठिन तपश्चर्या से गुजरना पड़े। तपश्चर्या इसीलिए करनी पड़ती है वह कि वह एक बिलकुल प्रकृति के नियम के प्रतिकूल काम करने की कोशिश कर रहा है। मेरा मानना है कि शरीर पहले है आत्मा पीछे है। भौतिक पहले है अध्यात्म पीछे है। और जिसका शरीर अभी अतृप्त है और परेशान और पीड़ित है वह आत्मा की बात सोच भी नहीं सकता। और जिसके जीवन में अभी भौतिक सुविधा के लिए हम सामान्य इंतजाम नहीं कर पाए उसके अध्यात्म की बातें अफीम की बातें हैं। वह मार्क्स ने ठीक कहा है। वह सिर्फ दुख को भुलाने के लिए अध्यात्म की बातें कर रहा है। तो मेरी मान्यता यह है मेरा जोर है इस बात पर कि भौतिकता की पूर्णता से व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन आप यह मत सोचना कि मेरा लक्ष्य भौतिकता है। जोर मेरा भौतिकवाद पर है और लक्ष्य मेरा अध्यात्मवाद है।<br>ओशो<br>पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:<br>* इतने ऊंचे सिद्धांत हैं समाज ऊंचा क्यों नहीं होता?<br>* काम-ऊर्जा रूपातंरण के सूत्र<br>* अश्लीलता हमारी नैतिकता का फल<br>* विचार और दर्शन में क्या फर्क है?
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.