Chhattisgarh Ke Rashtriya-Aandolan Mein Satanaam-Panth Ka Yogadan (San -1885 se 1947 A.D.)

About The Book

प्रस्तुत “ग्रंथ छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय आंदोलन में सतनाम-पंथ का योगदान” (सन् 1885 से 1947ई.) विषय पर केन्द्रित है। पुस्तक में छत्तीसगढ़ में संचालित स्वाधीनता आंदोलन तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रत्येक गतिविधियों और कार्यक्रमों में सतनामियों के उत्कृष्ट भूमिका को यथार्थ और तथ्यात्मक ढंग से प्रकाश में लाने का यथेष्ट प्रयास किया गया है। यह ग्रंथ न केवल सतनामियों के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को रेखांकित करता है अपितु तत्कालीन सम्पूर्ण राष्ट्रीय परिस्थितियों को प्रतिबिम्बत करता है।उक्त ग्रंथ में भारतीय नवजागरण तथा राष्ट्रीय प्रदेय में संत गुरूघासीदास एवं उनके द्वारा प्रणीत सतनाम - आंदोलन की भूमिका को प्रामाणिक ढंग से उल्लेख किया गया है। पुस्तक में सतनामी अगुओं या प्रमुखों द्वारा संचालित सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन सामाजिक राजनीतिक चेतना की दिशा में चलाये गये सकारात्मक मुहिम गो-वध रोको आंदोलन का विशद वर्णन हुआ है। आजादी के आंदोलन के समय में गो- वध रोको आंदोलन की सफलता सतनामियों की बहुत-बड़ी उपलब्धि है। इससे सतनामियों को राष्ट्रीय राजनीतिक मंच में सम्मान और स्थान मिला।अखिल भारतीय सतनामी महासभा (सन् 1925) के सामाजिक एवं स्वतंत्रता आंदोलन से संदर्भित नीतियों और गतिविधियों की विवचेना की गई है। छत्तीसगढ़ में गांधी जी के आगमन तथा सतनामी प्रतिनिधि मंडल से उनकी भेंट वार्ता और गांधी जी के अपील पर सतनाम - आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन का समन्वय होने के पश्चात छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलन की तीव्रता और गतिमान होने का उल्लेख उक्त ग्रंथ में किया गया है।गाँधी युगीन प्रत्येक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन यथा असहयोग आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन तथा कांग्रेस की समस्त गतिविधियों व कार्यक्रमों में सतनाम पंथ के सत्याग्रहियों ने सक्रिय भूमिका के साथ राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह किया जिसका विस्तृत वर्णन इस ग्रंथ में हुआ है। इस परिपेक्ष्य में यह कहना प्रासांगिक और उचित होगा कि छतीसगढ़ के स्वतंत्रता आंदोलन का सफल बनाने में सतनामियों का महत्वपूर्ण भूमिका रही है।निश्चय ही उक्त पुस्तक के अध्ययन-अध्यापन में सम्माननीय पाठको प्रिय विद्यार्थियों का ज्ञान वर्धन होगा। छत्तीसगढ़ के इतिहास में इस ग्रंथ की नई कड़ी जुड़ने से छत्तीसगढ़ का इतिहास समृद्ध होगा। सतनामियों का आत्म - सम्मान और गौरव में अभिवृद्धि होगा आर सम्पूर्ण समाज में सतनामियों के प्रति आदर और सम्मान का भाव जागृत होगा।
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