‘छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’ कविता में बच्चा लाल जी ने अपनी इस शक्ति का पूरा परिचय दिया है। वे रोते-झींकते या फुफकारते नजर नहीं आते बल्कि बहुत तीखेपन के साथ व्यंग्य करते हैं। वे अपने ऊपर थोपी गई जातिगत हीनता पर शर्मिंदा नहीं होते उल्टे यह बताते हैं कि खुद को श्रेष्ठतर मनुष्य बताने वाला यह जो वर्चस्ववादी तबका है वह दरअसल मनुष्य के रूप में कितना हीन है। वह चुनावी राजनीति के उस छल छद्म को भी पकड़ते हैं जिसमें दलित अब भी इस्तेमाल की वस्तु हैं। वे उस यथास्थिति को बिल्कुल सटीक शब्दों में रख देते हैं जिसे बहुत सारी कविताएं छुपाने की कोशिश करती हैं या ठीक से व्यक्त नहीं कर पातीं। संग्रह की दूसरी कविताओं में भी बच्चा लाल जी के ये तेवर दिखाई पड़ते हैं। वह सीधे-सीधे बात कहते हैं लेकिन कहते-कहते कुछ ऐसा कह जाते हैं जिसकी झनझनाहट देर तक हमारे भीतर बनी रहती है। उनकी कविता प्रचलित मुख्यधारा के झूठ को तार-तार कर देती है और अपना एक दलित सत्य रखती है जो अब दलित और उत्पीड़ित होने को तैयार नहीं है। इस क्रम में कई बार वे इतिहास और मिथक कथाओं से भी टकराते हैं।