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About The Book
Description
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विचार चिंतन के निष्कर्ष का अमूर्त रूप है। यह सोचने की ऐसी परिणति है जो कभी आगे चलकर क्रियान्वयन में मूर्त हो उठती है। विचार जुगनू भी है दीपशिखा भी और सूरज भी। वह प्रकाश का हर ऐसा स्रोत है जो अँधेरे से लड़ने को तत्पर है। वह लहर है जिसके पास रेत पर अपनी पहचान रचने की संकल्प शक्ति है। वह छेनी है जिसके पास किसी यक्षी किसी शालभंजिका किसी अंबिका को आकार देने की सामर्थ्य है। वह तूलिका है जो ऐसे रूप को रच देती है जो रूप हरेक को अपना लगता है। वह ऐसा दर्पण है जिसमें प्रतिबिंब उलटे दिखाई नहीं देते। ऐसी परछाईं है जो सूरज के ढलने के साथ घटती नहीं बल्कि और लंबी होती चली जाती है। विचार सुबह-सुबह दूब पर ठहरे हुए ओस के कण ज़मीन पर बिछे हरसिंगार और टप-टप टपककर धरती को महकाते हुए वे फूल हैं जो केवल धरती का सौरभ और शृंगार बने रहना चाहते हैं उन्हें आकाश की ऊँचाई की दरकार नहीं होती। —इसी संग्रह से शब्दों के कुशल चितेरे श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय के लालित्यपूर्ण ललित निबंधों का पठनीय संकलन।.