Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo - चिंता छोड़ो सुख से जियो (Hindi Translation of How to Stop Worrying & Start Living) by Dale Carnegie +Apke Avchetan Man Ki Shakti : आपके अवचेतन मन की शक्ति (The Power of Your Subconscious Mind in Hindi) by Dr. Joseph Murphy+YOGI KATHAAMRIT+Jeevan Jine Ki Kala (जीवन जीने की कला)
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About The Book
Description
Author
The Autobiography of Yogi The book is of Paramahansa Yoganandas remarkable life story that opens our minds to the joys the boundless beauty and the unending possibilities of every living being. The book narrates about the world of Yogis and Saints Science and miracles death and rebirth. Also reveals the deepest secrets of life and of this world. It emphasizes the value of KRIYA YOGA and a life of self-respect calmness determination simple diet and regular exercise.<br />A complete study of the science of Kriya Yoga which is a simple<br /> psychophysiological method by which the human blood is decarbonized and recharged with oxygen.<br />It helps the people to nurture their spiritual growth and awaken to Self and God-realization.<br />A book that opens windows of the mind and spirit.<br />- India Journal+जीवन की कला से मेरा यही प्रयोजन है कि हमारी संवेदनशीलता हमारी पात्रता हमारी ग्राहकता हमारी रिसेप्टिविटी इतनी विकसित हो कि जीवन में जो सुंदर है जीवन में जो सत्य है जीवन में जो शिव है वह सब-वह सब हमारे हृदय तक पहुंच सके। उस सबको हम अनुभव कर सकें लेकिन हम जीवन के साथ जो व्यवहार करते। हैं उससे हमारे हृदय का दर्पण न तो निखरता न निर्मल होता न साफ होता; और गंदा होता और धूल से भर जाता है। उसमें प्रतिबिंब पड़ने और भी कठिन हो जाते हैं। जिस भांति जीवन को हम बनाए हैं-सारी शिक्षा सारी संस्कृति सारा समाज मनुष्य के व्यक्तित्व को ठीक दिशा में नहीं ले जाता है। बचपन से ही गलत दिशा शुरू हो जाती है और वह गलत दिशा जीवन भर जीवन से ही परिचित होने में बाधा डालती रहती है। पहली बात जीवन को अनुभव करने के लिए एक प्रामाणिक चित्त एक शुद्ध दिमाग चाहिए। हमारा सारा चित्त औपचारिक है फार्मल है प्रामाणिक नहीं है। न तो प्रामाणिक रूप से कभी प्रेम न कभी क्रोध न प्रामाणिक रूप से कभी हमने घृणा की । है न प्रामाणिक रूप से हमने कभी क्षमा की है। हमारे सारे चित्त के आवर्तन हमारे सारे चित्त के रूप औपचारिक हैं झूठे हैं मिथ्या हैं। अब मिथ्या चित्त को लेकर जीवन के सत्य को कोई कैसे जान सकता है? सत्य चित्त को लेकर ही जीवन के सत्य से संबंधित हुआ जा सकता है।