पिछले दो-ढाई दशकों में समाज़ तेजी से बदला है। वैश्विक शक्तियों का ध्रुवीकरणऔर तीसरी दुनियाँ का स्वरूप अब इतिहास की वस्तु है। अब केवल दो समाज हैंअति संपन्न अति वंचित समूह। इसके बीच मध्यवर्ग सबसे अधिक दिगभ्रमित औरविचलित है। आज गाँव-देहात की आधारभूत सामाजिक इकाई सीधे वैश्वीकरण कीउस प्रक्रिया से जुड़ी दिखाई देती है जो उसके सामाजिक-आर्थिक और राजनैतिकपरिवेश को ही नहीं बल्कि उसके चिन्तन और विचार प्रक्रिया को भी प्रभावित कररही है।इस बदलते सामाजिक यथार्थ और उससे निर्मित नये परिवेश और विचार के स्वरूपकी अभी पहचान हो रही है। साहित्य में ये बदलाव अब धीरे-धीरे नये कथ्य औरविषय के रूप में दिखलायी देने लगे हैं।कथाकार कमल की कहानियाँ इस रूप में चकित करती हैं। उन्होंने वैश्वीकरणके प्रभावों से उत्पन्न नयी सामाजिक-अर्थिक परिस्थितियों को गहनता से समझाहै और भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में बदलते मानवीय स्वरूप को प्रभावीढंग से अपनी कहानियों में चित्रित किया है। आज सहज मानवीय संवेदनाएँ रिश्तेदाँव पर लगे हैं। एक नयी व्यापार संस्कृति बन रही है जहाँ अन्धी दौड़ है पैसेके लिए। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ मनभावन ऊँचा वेतन तो दे रही हैं लेकिन बदले मेंजीवन का सत् छीन कर।चकाचौंध करता पग-पग छलता बाज़ार जीवन की प्राथमिकतायें बदल रहा है औररिश्ते-नाते गौण हो रहे हैं। अब बचा है तो बस! आत्मकेंद्रित व्यक्ति।कमल की कहानियाँ इन बदलती सच्चाइयों को बेहद कलात्मकता के साथ प्रस्तुतकरती हैं और साथ ही वैश्विक शक्तियों की उन षडयंत्रकारी नीतियों को भी विषयबनाती हैं जो इस हरी-भरी धरती को बंजर बना कर मानवता को नष्ट करने पर तुलीहैं। कमल अपनी इन कहानियों में प्रतिरोध की ताकतों की ओर भी संकेत करते हैंयानि विकल्पहीन नहीं है यह व्यवस्था।इन कहानियों में एक बेहतर समाज का सपना भी पलता है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.