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About The Book
Description
Author
भारत का सिनेमा लगभग विश्व सिनेमा जितना ही पुराना है और इसे आज की गरिमामयी स्थिति तक पहुंचाने में बहुत से लोगों का हाथ रहा है। कुछ लोग भुला दिए गए और इस किताब में उन्हीं की बात है। इससे बेहतर श्रद्धांजलि उन्हें नहीं दी जा सकती। टेलीविजन ने जो स्वर्णिम समय देखा है भारत में उसका भी ज़िक़्र है और उससे जुड़ी कहानियां भी हैं इस किताब में। साहित्य सिनेमा टेलीविजन और मनोविज्ञान की मिली जुली ज़मीन पर लिखी गई बातें निश्चित रूप से पाठकों के मन में रहेंगी और इस विधा को पढ़ने वाले विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी होगी ये किताब।