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About The Book

एक कविता प्रेमी कवि होता है एक कविता पर खड़ा हुआ कवि होता है और एक कविता से लिपटा-कविता तले दबा उससे रस लेता सुगंध पाता-फैलाता जी रहा कवि। वस्तुतः वह कवि नहीं एक साधाारण आदमी बना रहकर ही जी रहा होता है। कुछ रत्ती अक्ल आने पर लगता है (कविता से प्रसिद्धि पा लेने की कामना और उससे बढ़कर कोशिश करना कविता की छाती पर चढ़कर उसपर कब्जा जमाकर दुनिया को बताना है कि देखो मैं इस-ऐसी कविता का पट्टाधारी मालिक हूँ। इससे बात नहीं बनेगी। कविता रंजित होकर चल सकने की कोशिश की जरूरत लगती है। दुखिया-----हाँ दुखिया बनकर जागकर रो-रोकर भी जीने को अपनी जीवन शैली की समय-समय पर जरूरत है।
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