कभी गली की नुक्कड़ पर छोटी सी चाय की टपरी तो कभी किसी बड़े से मॉल के सोफेस्टिकेटेड कैफ़े में; कभी किसी अंजान सड़क के किनारे ‘प्रचण्ड ठंडी बियर’ बेचने वाले ढाबे तो कभी शहर का सबसे मशहूर पब में; कभी शाम को मिलते दोस्तों के बीच तो कभी सालों बाद दुनिया के अलग-अलग कोनों से बकैती करते ग्रुप कॉल और मैसेज में; उन भूले-भटके हँसाते-रुलाते सच्चे-झूठे कुछ बेस्वाद तो कुछ चटपटे; आज की टेंशन भरी जिंदगी में कोम्फेर्ट के लम्हों की तलाश में मिले कुछ किस्से और कुछ कहानियों का एक छोटा सा गुलदस्ता है यह किताब - ‘कम्फर्ट ज़ोन’I रोज की वही कार्बन कॉपी जिंदगी से कुछ मतलबी लम्हे चुराने की ख्वाहिश ने अर्णय जोशी को पिछले 18 सालों की IT की जिंदगी से एक छोटा सा ब्रेक ले कर एक लेखक बनने को उत्साहित किया हैI अपने स्कूल और कॉलेज की जिंदगी नैनीताल और देहरादून में गुजरने के बाद उन्होंने HCL और Microsoft जैसी कंपनियों में देश-विदेश रह काम करा हैI फिलहाल वह दोबारा से IT की ओर रुख करके अपनी अगली किताब के लिए कुछ नए किस्से-कहानियाँ तलाशने निकल पड़े हैंI
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