हमारी भारतीय संस्कृति के पास एक विशिष्ट माध्यम है जो पूरी दुनिया में किसी के पास नहीं है - वह है संन्यास। गहराई में जा कर देखें तो संन्यास और सोशल डिस्टेंसिंग एक ही है। संन्यास दिव्य स्थिति है और सोशल डिस्टेंसिंग व्यवहारिक अनुशासन है। हम कोरोना के साथ क्या कर सकते है इसे समझने में हमारी भारतीय मौलिकता काम आएगी जो अध्यात्म का ही दूसरा रूप है। हम धर्म और अध्यात्म का अंतर इस पुस्तक के माध्यम से समझ सकते हैं। धर्म शरीर है तो अध्यात्म आत्मा है धर्म सतह है तो आत्मा गहराई है धर्म ऊर्जा है तो आत्मा शक्ति है धर्म हमारी पहचान है तो आत्मा हमारा अस्तित्व है। यह पुस्तक हमें समझाती है कि कोरोना का प्रहार शरीर पर होगा और आहत भी शरीर होगा। आत्मा की अनुभूति ही आत्मा की समझ है जिसने आत्मा पर इस दौर में स्वयं को टिका लिया उसका आत्मबल ही कोरोना को पराजित करेगा।
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