Dadu Dayal- Kaljayi Kavi Aur Unka Kavya

About The Book

गागर में सागर की तरह इस पुस्तक में हिन्दी के कालजयी कवियों की विपुल काव्य-रचना में से श्रेष्ठतम और प्रतिनिधि काव्य का संकलन विस्तृत विवेचन के साथ प्रस्तुत है।दादू दयाल (1544-1603 ई.) मध्यकाल के सबसे प्रभावशाली और लोकप्रिय संतों में से एक हैं जिनकी वाणी का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। उनकी वाणी में उनके धर्म और दर्शन संबंधी विचारों की झलक मिलती है। उनके अनुसार मनुष्य जीवन का चरम उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है। उन्होंने साधु और मनुष्य के लिए एक आदर्श ‘रहनी’ मतलब जीवन पद्धति प्रस्तुत की है जिसमें सदाचार सत्संग आडंबरमुक्त जीवन शुद्ध आहार जैसे कई विधान हैं। दादू की ख़ास बात यह है कि वे संत-भक्त होने के साथ कवि भी हैं। उनकी वाणी अनायास कविता भी है। जीवन के व्यापक अनुभव के कारण उनके पास शब्दों मुहावरों सादृश्यों रूपकों आदि की भरमार है और जब उन्हें कुछ कहना होता है तो ये सब ज़रूरत के अनुसार उनकी स्मृति से उनकी वाणी में आ बैठते हैं। दादू का रचना-संसार बहुत बड़ा है। कहा यह जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में बीस हजार साखियाँ और पद लिखे। यहाँ उन रचनाओं को प्राथमिकता दी गई है जिनमें भक्ति और दर्शन के साथ कविता भी है। पदों के आगे उनसे संबंधित राग का उल्लेख किया है।इस पुस्तक का चयन व संपादन माधव हाड़ा ने किया है जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष माधव हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे साहित्य अकादेमी नई दिल्ली की साधारण सभा और हिन्दी परामर्श मंडल के सदस्य हैं।
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