मृदुला गर्ग का नाम हिन्दी जगत के लिए किसी परिचय का मोहताज नहीं। भारत में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली उनकी रचनाओं में भावनाओं का उतार-चढ़ाव भी है और प्रेम की पराकाष्ठा भी। साथ ही रिश्तों को सफलतापूर्वक निभाने की शिद्दत और सब कुछ खोकर बहुत कुछ पाने का जुनून भी है। हिन्दी भाषा में उनकी 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें उपन्यास, नाटक, लघु कहानी संग्रह एवं निबंध संग्रह शामिल है। उनके उपन्यास व कहानियों को भारतीय भाषाओं के अलावा जर्मन, जापानी, अंग्रेजी, चेक में भी अनुवाद किया गया है। उन्हें साहित्यकार सम्मान, साहित्य भूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 'इंडिया टुडे' (हिन्दी) पत्रिका के स्थायी स्तंभ 'कटाक्ष' के लिए वह विगत तीन वर्षों से लिख रही हैं।
'डैफोडिल जल रहे हैं तथा अन्य कहानियां' उनके कलम से निकले शब्दों में परिवेश बुनती हुई हिन्दी कहानी को निश्चित परिप्रेक्ष्य व कलात्मक आधार देती है। यह न सिर्फ भरपूर मनोरंजन करती है, वरन पाठक कहानी की भावनाओं के साथ प्रवाहित होने लगता है। मृदुला जी की कथायात्रा का विचार, विकास तथा शिल्प सभी स्तरों पर अनुभव किया जा सकता है और यही एक लेखक की सफलता है।
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