DALIT STREE VIMARSH : SRIJAN AUR SANGHARSH

About The Book

वर्चस्व की संस्कृति ने जिस प्रकार दलितों और स्त्रियों को हाशिए पर डाल दिया था उसी प्रकार स्त्री और दलित साहित्य ने भी अपने साहित्य और आंदोलनों में अपने अस्तित्व और अस्मिता के सवालों को तो तरजीह दिया किन्तु दलित स्त्री के प्रश्नों को उपेक्षित कर दिया । अपनी घोर उपेक्षा के इस अनुभव से उत्त्प्रेरित होकर उन्होंने अपनी अस्मिता को बचाने के लिए साहित्य लेखन का मार्ग अख्तियार किया । वे इतिहास में जाकर छान-बीन कर रही हैं और अपने संघर्ष का इतिहास लिखने हेतु प्रतिबद्ध हैं । दलित स्त्री विमर्श को हाल ही में उदित अस्मितावादी राजनीति का हिस्सा नहीं मानना चाहिए क्योंकि इसके आने के पीछे उसके संघर्षों का लम्बा इतिहास रहा है । सत्तर के दशक में दो बड़े सामाजिक आंदोलनों दलित और स्त्री आन्दोलन ने दलित स्त्रियों की आवाज को उपेक्षित किया । दलित स्त्रियों के संघर्ष के इतिहास के अन्वेषण की भी आवश्यकता है जिसे अभी तक नज़रअंदाज़ किया गया है । दलित स्त्रियां धारा के विरुद्ध और तमाम उत्पीड़नों व बंधनों के बावजूद अपनी पहचान के लिए संघर्ष करती रहीं हैं । यह विचारणीय प्रश्न है कि कैसे इतिहास में संघर्षरत दलित स्त्रियों की आवाज को दबा दिया गया जबकि यह सच है कि सदियों से निचले तबकों की इन स्त्रियों ने जमीनी लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । आज हमारे समक्ष यह चुनौती है कि उन आवाजों को कैसे ढूंढा जाय ।
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