सृष्टि के आदि काल से मौन जहाँ तपस्यारत है । शब्द के रूप में नाद जहाँ जन्म लेकर पनपते हैं स्वयं अपने भगवान् शिव के लिए । यहीं पर स्वयंभू शिव हर युग में देह और प्राण को सायुज्य प्रदान करते हैं । इस काशी ने एक कालातीत सफर तय किया है उस युग के कल से लेकर इस युग के आज तक का सफर । दण्डपाणि च भैरवम् हमारे भगवान् और भारतीय सभ्यता की परत दर परत संक्षिप्त कथा है । आनन्दकानन के इस इतिहासगाथा का विवरण जगह- जगह टूटे और बिखरे हुए अक्षरों में मिलता है जिसे यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी और डॉ. विजय नाथ मिश्र ने चुन-चुन कर एकत्रित किया है।
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