शकेब जलाली पाकिस्तान के उन महत्वपूर्ण शायरों में से एक हैं जिनके बिना बीसवीं सदी की उर्दू शायरी का इतिहास लिखा जाना सम्भव नहीं।<br>मुझको गिरना है तो मैं अपने ही कदमों में गिरूँ जिस तरह साया-ए-दीवार पे दीवार गिरे<br>जैसा शे'र कहने वाले इस स्वाभिमानी शायर ने अपनी भरी जवानी में आत्महत्या कर ली। उनके अनेक शे'र भारतीय काव्य प्रेमियों की ज़बान पर आज भी चढ़े हुए हैं।<br>शकेब जलाली की मर्मस्पर्शी ग़ज़लों और नज़्मों का हिन्दी में पहला संकलन
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