मैंने अभी तक चार उपन्यास लिखे हैं जिसमें से एक दहेज़ प्रताड़ना दोषी कौन? जोकि एक समय दहेज़ रुपी दंश से बेटियां प्रताड़ित की जा रहा थी। यह 1975 से 2005 तक के समय की बात है। मैंने इस उपन्यास को 1982-83 में दहेज़ की बलि के नाम से लिखा था लेकिन इसको प्रकाशित करने के लिए समय ही नहीं लगा जिस कारण आज की परिस्थितियों बदल गई थी और मैंने इसका नाम दहेज प्रताड़ना दोषी कौन? के रूप में दोबारा थोड़ा सा इसमें बदलाव करके प्रकाशित करवाया अब मैं अपना दूसरा उपन्यास दर्द भरी राहें प्रकाशित करवाने जा रहा हूं इसमें एक गरीब शोषित असहाय परिवार की कहानी है जिसमें बूढ़े मां-बाप की पांच संताने हैं जिनमें से बड़ा बेटा कहीं बाहर शहर में अध्यापक कोर्स करता है तथा उससे छोटा परिवार के पालन- पोषण के लिए दिहाड़ीदार मज़दूर के रूप में काम करता है कभी होटल पर बर्तन साफ करता है तो कभी अलग-अलग विभागों में दिहाड़ीदार मज़दूर के रूप में काम करता हुआ अपने परिवार की खुशियों के लिए भटकता रहता है और उनको जीवन में कभी भी दो वक्त की रोटी पेट भरकर नसीब नहीं होती है उस लड़के के पिता बुढ़े बीमार पड़े रहते हैं और मां खेती-बाड़ी तथा जानवरों का पालन करके उन्हें बेच कर परिवार का गुजारा करने में व्यस्त रहती है इसी तरह की यह कहानी आज के समाज के वंचित- शोषित -असहाय तथा लघु किसान जो अपने जीवन को अपनी दो वक्त की रोटी के लिए खपा देते हैं इस कहानी में मैंने गरीबों के प्रति अन्याय होते हुए देखा है तथा यह कहानी सच्चाई पर आधारित नहीं है इसे मैं समाज के वंचित वर्गों की ओर सरकार का तथा धनाढ्य लोगों का ध्यान आकर्षित करवाने के लिए यह कहानी लिखी हुई है। यह कहानी मेरी कल्पना पर आधारित है इसमें अगर कोई सच्चाई का पुट भी मिलता-जुलता हो तो उससे मेरी कहानी से कोई संबंध नहीं हैलेखक:जीवन सिंह पठानिया मृदुल।
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