Dard Ka Rishta । दर्द का रिश्ता

About The Book

ग़ज़ल-संग्रह ‘दर्द का रिश्ता’ में ऐसी ग़ज़लें हैं जो यह दिखाती हैं कि ग़ज़ल कोठों से उतरकर सामान्य आदमी तक आ गई है। ये ग़ज़लें प्रेमी-प्रेमिका के मिलन-वियोग और महबूब के रीतिकालीन नख- शिख वर्णन के कटघरे से निकलकर सामाजिक विसंगतियों रोज़मर्रा की रोज़ी-रोटी की जद्दोजहद पल- पल बदलते रिश्तों की त्रासदी पीड़ा से निकलने की छटपटाहट और मानवीय संवेदनाओं को काग़ज़ पर उतारती ही नहीं हैं बल्कि इन समस्याओं से जूझने का रास्ता और फ़ायदा भी बताती हैं। यह किताब यह भी स्पष्ट कर देती है के ग़ज़ल के विस्तार में इश्क़ मज़ाजी या लौकिक प्रेम से आगे भी बहुत कुछ है। इस किताब की ग़ज़लें निराशावादी नहीं हैं बल्कि इरादा ज़ाहिर कर देती हैं कि ‘हमें टूटे खिलौनों से नहीं कमरे सजाने हैं।’ इन ग़ज़लों में ताज़गी है नए बिंब हैं हमारे-आपके रोज़ाना के अनुभव हैं और इसी वजह से उम्मीद है कि यह किताब आप पाठकों को पसंद आएगी।
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