फ़ारसी शायरी की सूफ़ियाना फ़ज़ा और उसको बयाँ करने वाली नफ़्सीयात बीसवीं सदी की खान्क़ाही तहज़ीब और उसको बयान करने वाली तहज़ीब शायर की तबई दरवेश-मिज़ाजी हम अस्र शायरी के दास्तानी अनासिर मौजूदा सियासी-ओ-मआशरती सूरते-हाल और सरमायादारी निज़ाम की मादीयत परस्ती से मुईन निज़ामी के उस्लूबे-शहर की तशकील हुई है. उसने महज़ वदीयत पर इक्तिफ़ा नहीं किया बल्कि इक्तिसाब से उसका हक़ अदा किया है इसीलिए उसका उस्लूब अपने अस्र से मुन्सलिक होते हुए भी मुख़्तलिफ़ है.....
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