दरिया में तैरता चाँद एक कविता-संग्रह के साथ-साथ आत्मा की खोज है — जिसमें प्रेम सबसे ऊँची भावना बनकर उभरता है। ये प्रेम केवल दो लोगों के बीच नहीं बल्कि उस गहरे जुड़ाव की बात करता है जो हमें प्रकृति से अस्तित्व से अपनी जड़ों से और खुद अपने आप से होता है।कवि सवाल करता है — हमारे गुण-अवगुण कहाँ से आते हैं?क्या हम केवल अपने माँ-बाप और अपने पूर्वजों से सीखते हैं या फिर पूरी सृष्टि ही हमारी पूर्वज है?क्या एक पेड़ की जड़ें एक नदी की बहती धारा और परिंदों की उड़ान हमारे भीतर कहीं न कहीं से बहती है?इस संग्रह की कविताएँ इन्हीं भावनाओं और सवालों की उपज हैं। कभी फूल की कोमलता में प्रेम की मासूमियत झलकती है तो कभी काँटे उस प्रेम की कसक बन जाते हैं। कभी कवि जड़ों से अपने भीतर झाँकता है — और कभी शाखाओं से बाहर की दुनिया को स्वीकार करता है।यह संग्रह एक निमंत्रण है — उन लोगों के लिए जो जीवन को केवल जीना नहीं बल्कि महसूस करना चाहते हैं। उनके लिए जो शब्दों के पीछे के मौन को समझना चाहते हैं। उनके लिए जो प्रेम को किसी व्यक्ति के नाम से नहीं बल्कि एक भाव की तरह जीते हैं। यह संग्रह उसी किनारे की दावत है जहाँ कवि बैठा है कभी ख़ुद से कभी आपसे और अक्सर — उस चाँद से बात करता है जो दरिया में तैरता है।तो चलिए इस सफ़र में जीवन के कुछ रंगों को महसूस करने प्रेम और आभार के साथ इस जीवन को स्वीकार करने क़ुदरत के अद्भुत आश्चर्यों पर आश्चर्य करने —“आओ बैठो मेरे किनारे परसुनो मेरे ख़ामोशियों की ध्वनियाँछूओ पानी से नर्म जज़्बात मेरेबह चलो ढूँढने समंदर की सीपियाँ”- सतलुज
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