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About The Book
Description
Author
मैं हैरान हूँ
मैं इंसान हूँ
क्या होती है इंसानियत जानने को बेताब हूँ
ढूँढता हूँ इंसानियत मिलने को बेकरार हूँ।
मैं हैरान हूँ
मैं इंसान हूँ
मिली नहीं कहीं इंसानियत मैं हैरान हूँ
जो मिल जाए कहीं इंसानियत नतमस्तक होने को तैयार हूँ।
मैं हैरान हूँ
मैं इंसान हूँ
इंसान के इस शहर में कभी देखी नहीं इंसानियत
भावशून्य इस दुनिया ने कभी समझी नहीं इंसानियत।
मैं हैरान हूँ
मैं इंसान हूँ
यहां भावनाओं की कोई कदर नहीं भावहीन हर इंसान है
लगता है जैसे इंसानों के इस शहर में बसा पूरा कब्रिस्तान है।
मैं हैरान हूँ
मैं इंसान हूँ।