विश्वव्यापी दर्शन की धारा को देखने से मालूम होगा कि वह राष्ट्रीय की अपेक्षा अन्तर्राष्ट्रीय ज्यादा है। दार्शनिक विचारों के ग्रहण करने में उसने कहीं ज्यादा उदारता दिखलाई जितना कि धर्म ने एक दूसरे देश के धर्मों को स्वीकार करने में। यह कहना गलत होगा कि दर्शन के विचारों के पीछे आर्थिक प्रश्नों का कोई लगाव नहीं था तो भी धर्मों की अपेक्षा बहुत कम एक राष्ट्र के स्वार्थ को दूसरे पर लादना चाहता रहा; इसीलिए हम जितना गंगा आमू-दजला और नालंदा-बुखारा- बगदाद कार्दोवा का स्वतंत्र स्नेहपूर्ण समागम दर्शनों में पाते हैं उतना साइंस के क्षेत्र से अलग कहीं नहीं पाते। हमें अफसोस है समय और साधन के अभाव से हम चीन-जापान की दार्शनिक धारा को नहीं दे सके; किन्तु वैसा होने पर भी इस निष्कर्ष में तो कोई अन्तर नहीं पड़ता कि दर्शन क्षेत्र में राष्ट्रीयता की तान छेड़ने वाला खुद धोखे में है और दूसरों को धोखे में डालना चाहता है। मैंने यहाँ दर्शन को विस्तृत भूगोल के मानचित्र पर एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी को सामने रखते हुए देखने की कोशिश की है; मैं इसमें कितना सफल हुआ हूँ इसे कहने का अधिकारी मैं नहीं हूँ किन्तु मैं इतना जरूर समझता हूँ कि दर्शन को समझने का यही ठीक तरीका है और मुझे अफसोस है कि अभी तक किसी भाषा में दर्शन को इस तरह अध्ययन करने का यत्न नहीं किया गया है:-लेकिन इस तरीके की उपेक्षा ज्यादा समय तक नहीं की जा सकेगी यह निश्चित है।- इसी पुस्तक से
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.