यह पुस्तक क्यों ? आप पूछ सकते हैं। इतना ही कहूँगा की अनेक महापुरुष और महान स्त्रियाँ सभ्य समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं -- अपने अमर अवदान से। वे हमारे हृदय-पटल पर भी दस्तक देते हैं -- प्रत्यक्षतः अथवा पुस्तकों और दृश्य-श्रव्य माध्यमों इत्यादि से। आधुनिक समाज निरंतर द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है किन्तु समय की धूल व्यक्तियों के किरदारों पर तेज़ी से अपने भ्रामक-कण भी गिरा रही है। यदि सद_विचारों को संहिताबद्ध न किया गया तो उन्हें भविष्य में सुगमता से प्राप्त कर सकना संभव नहीं होगा। अतः ऐसे असाधारण व्यक्तित्व जो स्वयं में ही किसी दुर्लभ विचार सरीखे हों उन्हें संजोना हर बुद्धिजीवी की अनिवार्य ज़िम्मेदारी है। मुझ अकिंचन की भी। फलतः यह पुस्तक -- दस जीवनियां। : *सुधाकर अदीब*
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