*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹157
₹200
21% OFF
Paperback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
सहजता ही दयानंद पांडेय के उपन्यासों की शक्ति है। उन के उपन्यासों में व्यौरे बहुत मिलते हैं। ऐसा लगता है जीवन को यथासंभव विस्तार में देखने की एक रचनात्मक जिद भी उन के उपन्यासकार का स्वभाव है। इस शक्ति और स्वभाव का परिचय देते उन के यह तीन उपन्यास इस में पढ़े जा सकते हैं। इन तीनों उपन्यासों में समकालीन समाज के कुछ ऐसे बिंब हैं जिनमें ‘अप्रत्याशित जीवन’ की अनेक छवियां झिलमिलाती हैं। ‘स्त्री’ दयानंद पांडेय के उपन्यासोंके मुख्य सरोकारों में से एक है। मन्ना जल्दी आना मुजरिम चांद और मैत्रेयी की मुश्किलें और इन के चरित्र जीवन का अनुसरण करते हैं। किसी घोषित आंदोलन का नहीं। हो सकता है किसी पाठक-आलोचक को इन कहानियों और चरित्रों में बौद्धिक मारकाट या सैद्धांतिक संघर्ष ऊपरी सतह पर तैरता न दिखे फिर भी शीर्षक लगा कर निष्कर्ष देने के स्थान पर ये रचनाएं जीवन को समस्त विचलनों के साथ सामने लाती हैं। मन्ना जल्दी आना भारत बांगलादेश और पाकिस्तान के त्रिकोण में छटपटाते जाने कितने हिंदुओं-मुसलमानों के दुखों का बयान है। अब्दुल मन्नान और उन के परिवार की कहानी में जाति धर्म सियासत के कई समकालीन धब्बे भी दिखते हैं। सहज विवेक से दयानंद पांडेय ने इस कहानी को ‘सांप्रदायिकता’ से बचा लिया है। लेखक ने एक पुरानी युक्ति के रूप में तोते का इस्तेमाल किया है जो तोताचश्म जमाने को देखते हुए एक नया अर्थ भी दे सकता है। दयानंद पांडेय का एक और उपन्यास मुजरिम चांद भी प्रशासन पत्रकारिता और समाज की एक रोचक कहानी है। मुजरिम चांद में एक राज्यपाल हैं और अभिनेता दिलीप कुमार भी । किस तरह एक छोटी सी ‘त्रुटि’ के बाद पत्रकार राजीव का उत्पीड़न होता है और कैसे विशिष्ट के सामने सामान्य व्यक्ति उच्छिष्ट बन कर रह जाता है इसे किस्सागोई के अंदाज में लेखक ने रेखांकित किया है। राज्यपाल और दिलीप कुमार के प्रसंग बेहद दिलचस्प हैं। पत्रकारिता के हुनर का सार्थक प्रयोग लेखक ने किया है। विवरण बहुत हैं कई जगह बेवजह। मैत्रेयी एक दूसरी तरह का स्त्री पक्ष है। मैत्रेयी की मुश्किलें जैसा उपन्यास किसी को स्त्री विरोधी भी लग सकता है। मैत्रेयी का वर्जनाहीन यौनाचरण विचित्र लग सकता है लेकिन है नहीं।स्वच्छंद जीवन जीने की कामना और कुंठाओं से भरे पुरुष प्रधान समाज के बीच मैत्रेयी की मुश्किलें आकार लेती हैं। कई पुरुषों के साथ रह कर भी वह एक ईमानदार साहचर्य से वंचित है। रस रहस्य और रौरव से भरी यह कहानी कहीं चौंकाती है.... कहीं करुणा से भर देती है। अर्थात ‘मैत्रेयी’ की यादें उस के साथ ऐसे चल रही थीं जैसे आकाश में बसे तारे चांद और खुद आकाश भी साथ-साथ चलता है।....और क्या धरती भी साथ-साथ नहीं चलती?....हां धरती का भूगोल जरूर बदलता रहता है। बदलता तो आकाश का भी है पर पता नहीं पड़ता। जैसे मैत्रेयी का पता नहीं पड़ता।’ प्रेम और प्रवंचना के कठिन पाटों के बीच पिसती मैत्रेयी एक स्मरणीय चरित्र है। इन तीनों उपन्यासों की एक बड़ी विशेषता यह है कि यहां जीवन न तो सिद्धांतों से त्रस्त है न रचना के प्रचलित आलोचक रिझाऊ मुहावरों से आक्रांत। इन उपन्यासों का कथ्य अधिकांशतः चरित्र प्रधान है। यह कहना ही होगा कि दयानंद पांडेय अपने पात्रों के हत्यारे नहीं हैं जैसा कि हिंदी के कुछ कहानीकारों उपन्यासकारों के लिए प्रसिद्ध है।.