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About The Book
Description
Author
दीपक-राग राग-अनुराग जब अनुराग होगा या जब विराग होगा कोई न कोई राग तो छिड़ेगा ही क्योंकि जीवन ही एक राग है । लयबद्ध - तालबद्ध- छंदबद्ध हो या न हो । सुर-ताल सही हो या न हो । शुद्ध हो या अशुद्ध हो । कम गाया जाए या अधिक । किसी को अच्छा लगे या न लगे । कभी ख़ुशी का राग छिड़ेगा तो कभी गम की तान लगेगी । इन्हीं जी राग रागिनियों के साथ ज़िन्दगी बितानी है । संसार इन्ही रागों की महफ़िल है । मन में बजने वाले रागों को थोड़ी कल्पना देकर शब्दों के माध्यम से कागज पर उतारने का यह प्रयास है । इसमें शायद आपको रोजमर्रा के जीवन की कुछ धुनें मिलें । कुछ सुख की बातें हों तो कुछ दुख की । कुछ जीत का जिक्र हो तो कुछ हार का । लेकिन दीपक राग तो गाना ही होगा जिससे कि उजाला होने की आस बंधी रहे । हाँ मैं दीपक हूँ ।.