यह मेरा लेख पूर्णतः काल्पनिक एवम भावनात्मक लेख है मनुष्य अपने जीवन में कई तरह के सम्बंध बनाता है जैसे पारिवारिक सम्बंध वैवाहिक आर्थिक और सामाजिक संबध आदि। प्रेम संबंध दो विभिन्न विचारों समूहों के स्त्रीपुरुष का उनके आहार और व्यवहार की भिन्नतातत्पश्चात मनभेद स्त्री स्वाभिमान पर प्रहार अपमानविभिन्न समुदायों की वर्चस्व प्रधानता पुनः युद्ध का वातावरण एवं युद्ध की पुनरावत्ती और दुष्परिणाम को दर्शाया गया है। जब मन सभी आवृत्तियों और अवधारणाओं से मुक्त हो जाता है तो अपने स्वयं की खोज मे निकल पड़ता है...… जहां ना राग ना द्वेष है ना ही लोभ और मोह ना ही ईर्षा की भावना ना मुझमें धर्म काम और मोक्ष ही है मैं चैतन्य स्वरूप हूं आनंद हूं शिव हूं... ना मैं द्वेष रागौ न में लोभ मोहो मदौ नैव में नैव मात्सयृभावः न धर्मो न चारथौ न कामौ न मोक्षः चिदानंदस्वरूपः शिवोहम शिवोहम!
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