श्री वियोगी जी का गज़ल संग्रैह- बारीकियां बंजारा दीवान-ए-वियोगी प्रस्तुत है। वियोगी जी पेशे से बंजारे रहे। एकान्त-विश्राम में उनके लेखन से जीवन दर्शन व्यक्त होता प्रतीत होता है। जब जैसा लगा उस विधा में व्यक्त हुआ हैं। नौकरी में रहते अधिकतर लेखन पद्य में है गद्य में लेखन कम है वहीं नौकरी छोड़ने के बाद शिक्षण व पत्रकारिता क्षेत्र में काम करने से लेखन गद्य में अधिक रहा है। पद्य में गीत कविता गज़ल सान्नेट भजन आदी अंग्रेजी व डोगरी में है। स्वछंद कविता वियोगी जी पसन्द नहीं करते थे। गज़ल का एक परिष्कृत रूप सान्नेट विधा में व्यक्त हुआ है।लगभग 1750 सान्नेट 1000 गज़ल 700 कवितायें व 1000 शेर अंग्रेजी और डोगरी में लिखे गए हैं। छन्दों में वर्ण और मात्राओं की बंदीश की तरह गज़ल में भी वज़न बहर रदीफ काफ़िया मतला और मक्ता की बंदीश होती है। यह तुकबंदी की विधा नहीं है इसके लिए गज़ल की बारीकियां और चिंतन का गुण जिन्दगी के अनुभव का होना भी आवश्यक है।गज़़ल के एक-एक शेर में बड़ी से बड़ी बात कहने की क्षमता होती है। गज़ल में सामान्यतः विषम संख्यां के शेर होते हैं जैसे- 357....। प्रथम उर्दू में फिर अन्य भारतीय भाषाओं में भी प्रयोग होने लगे। डोगरी में भी गज़ल का प्रयोग हुआ है। वियोगी जी किन्ही कारणों से अपने लेखन को प्रकाशित नहीं करवा पाये थे। ‘वियोगी’ दी गज़लें दी बी ‘लोथल’ बनी नी जा तां सामनै लोकें दै इनें गी करा दा ए। वियोगी जी कि पत्नि होने से मैने उनकी रचनाओं को प्रकाशित करवाने का प्रयास किया है। हिन्दी भाषी होने व डोगरी न जानने के कारण इस दुरूह कार्य के लिए टाईपिगं सीखी व प्रस्तुत है।
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