Dena Pavana

About The Book

शरत्चन्द्र भारतीय वांग्मय के ऐसे अप्रतिम हस्ताक्षर हैं जो कालातीत और का संधियों से परे हैं । उन्होंने जिस महान साहित्य की रचना की है उसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाठकों को सम्मोहित और संचारित किया है । उनके अनेक उपन्यास भारत की लगभग हर भाषा में उपलब्ध हैं । उन्हें हिंदी में प्रस्तुत कर हम गौरवान्वित हैं ।<br>प्रस्तुत उपन्यास 'देना पावना' की नायिका अलका का बहुत ही छोटी उम्र में जीवानन्द के साथ विवाह हुआ था । लेकिन जब जीवानन्द उसी रात परिस्थितियों के कारण अलका से दूर हो गया तो अलका के पिता ने उसे अविवाहित मानकर देवी की भैरवी बना दिया । वर्षों के बाद जब अलका ने जीवानन्द को देखा तो उसका सोया हुआ नारीत्व फिर जाग उठा । जीवानन्द को पुलिस के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए अलका ने अपने माथे पर कलंक का ऐसा टीका लगा लिया कि उसे भैरवी का पद छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा । लेकिन अलका के इसी-नारीत्व ने जीवानन्द के दुराचारों और अत्याचारों के पीछे छिपे वास्तविक मनुष्य को उजागर कर दिया और उसका जीवन इस सीमा तक बदल गया कि वह सच्चाई के लिए अपना सर्वनाश तक करने के लिए तैयार हो गया । अन्त में अलका ने एक बार फिर बदनामी ओढ़ कर उसे बचा लिया ।
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