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About The Book
Description
Author
बैशाख की दोपहरी थी धूप बहुत तेज थी और गरमी भी बहुत पड़ रही थी। उसी समय देवदास मुखर्जी पाठशाला के कमरे के एक कोने में मिट्टी के ढेर पर बैठा था। हाथ में उसके एक स्लेट थी। वह कभी आँखें खोलता कभी बंद करता कभी पैरों को फैलाता और कभी सिकोड़ता और अंत में वह एकाएक बहुत बेचैन हो उठा। क्षण-भर में उसने यह तय कर लिया कि इस परम रमणीय ब्रेला में जहाँ-तहाँ घूमने या पतंग उड़ाने की अपेक्षा पाठशाला में बँधा रहना बेकार है । उसके प्रखर मस्तिष्क में एक बात सूझी और वह स्लेट हाथ में लेकर उठ खड़ा हुआ।