भारत की पहली जंगे-आज़ादी की वतन परस्त खातून वीरांगना लक्ष्मीबाई के नाम से पहचाना जाने वाला शहर झाँसी इतिहास के पन्नों में एक सुनहरा अध्याय है जिसकी वजह से यह शहर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है जो कि अपने दामन में सैकड़ों कहानियाँ और रत्न छुपाये हुये है जिनमें से एक रत्न है ''नादिर'' शाहजहांपुरी जो आज भी अपने नाम की तरह नादिर (अनुपम) है ।'नादिर' साहब ख़ानदाने मीर-तक़ी ''मीर'' और ''इशरत'' लखनवी के शार्गिद थे जिन्होंने बुन्देलखण्ड जैसे पिछड़े इलाके में रहकर उर्दू साहित्य और उर्दू शायरी का जो चिराग़ जलाया उससे पूरा हिन्दुस्तान जगमगा उठा।उन्होंने अपनी शायरी में न सिर्फ प्यार-मोहब्बत के चिराग़ रौशन किये बल्कि देश-भक्ति और समाजी आईनादारी तथा समाज के सरोकारों पर भी बहुत कुछ लिखा जो उर्दू साहित्य के आसमान पर अंकित होता चला गया।वे अंग्रेजी जबान के भी बहुत बड़े आलिम थे यही वजह है कि उन्होंने अपनी शायरी के हवाले से अंग्रेजी और पश्चिम के साहित्य का लाभ उठाकर उर्दू साहित्य का सलीका उर्दू के अदीबों को सिखाया और खुद भी इस पर अमल किया इस तरह उनकी शायरी सार्वभौगिक (यूनिवर्सल) बन गयी । नादिर साहब के जीवन काल में तथा उनकी मृत्यु के बाद हिन्दुस्तान की तमाम उर्दू पत्रिकाओं और समाचार पत्रों ने उनके बारे में बहुत कुछ लिखा और यह सिलसिला आज भी जारी है.....
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