प्रेम हर युग में अपने अलग-अलग व्याख्यानों एवम अलग अलग रूपों में उदय हुआ है लेकिन प्रेम ही वो विषय है सृष्टि के रचने से लेकर अंतिम युग के अंतिम प्रहर तक अपनी मौजूदगी देगा। यह सृष्टि भी तो समय समय पर प्रेम की सदा ही गवाह रही है। सती के भस्म हो जाने पर स्वंम महाकाल जो सर्वनाशी है उनके प्रेम में सती के वियोग को सह नहीं पाए और उनके मृत देह को कंधो पर उठाकर शोक करते रहे। एक वियोग का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है? एक युग में श्री राम मां जानकी के प्रेम में उनका विछड़ना कहां सह पाए थे जंगल-जंगल उन्हे याद करके रोते रहे बिलखते रहे बिछड़ने का इससे अच्छा उदाहरण कहां मिलेगा? एक युग में कृष्ण ने तो प्रेम की एक अलग ही परिभाषा समाज को दी। प्रेम के स्पंदन ने हर एक इंसान को छुआ है हर जानवर हर एक पक्षी को छुआ है बिना भेदभाव किए। यह पुस्तक काव्य संकलन है जिसमे प्रेम ही केंद्र में है। यह काव्य कृति प्रेम के हर पहलू को काव्य में पिरोती हुई आपको अपने समय की याद दिलाती हुई आगे बढ़ती है।
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