DHARAMVIR BHARTI : DHARMYUG KE JHAROKHE SE

About The Book

राम वनवास चौदह वर्ष का था। राम वनवास मानव जाति का हितकारक बना । आधुनिक साहित्य की दुनिया के एक लीजेंड का वनवास सत्ताईस वर्ष का रहा। उसका वनवास हिंदी भाषासाहित्य और पत्रकारिता का हितकारक बना। इस लीजेंड का नाम है धर्मवीर भारती। भारती जी के संपादन में मार्च 1960 में पहला और 21 नवम्बर 1987 को अन्तिम अंक आया था। इस बीच उनकी कोई कृति नहीं आयी। तैंतीस वर्ष बाद सन 1993 में उनका काव्य संकलन सपना अभी भी आया था। भारतीय साहित्य जगत धर्मवीर भारती के विभिन्न विधाओं में रचित रचनाकर्म से न केवल परिचित है अपितु उनकी हर कृति पर आलेखों का विपुल भंडार है। गुनाहों का देवता अंधा युग कनुप्रिया बंद गली का आखिरी मकान आदि पर तो इतना कुछ लिखा गया कि एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं। पर... पत्रकारिता की दुनिया मे धर्मवीर भारती के धर्मयुगीन समय ने एक इतिहास रचा है । इस कालखंड को जितना रेखांकित किया जाए यादों के झरोखे से इसे जितना भी देखा जाए कम ही है। आज की पीढ़ी धर्मयुग को जानती है धर्मयुग के दफ्तर की दीवारों के कानो को नहीं। पर दीवारें बोलती भी तो हैं। धर्मयुग के समय के अनेक युवा लेखक आज प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। प्रतिष्ठा की यह ज़मीन उन्हें धर्मयुग ने दी थी। इन प्रतिष्ठित लेखकों के मन मे भारती जी और उनके धर्मयुग को लेकर कहने को बहुत कुछ था जो अलिखित रहा। धर्मवीर भारती धर्मयुग के झरोखे से अतीत और वर्तमान को एक साथ संस्मरणात्मक मंच पर लाने का अनूठा रचनात्मक कर्म है।इस कृति का श्रमशील संपादन प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रेम जनमेजय ने किया है। प्रत्येक पीढ़ी के रचनाकर्मियों के रचनात्मक सहयोग ने इस पुस्तक को विशिष्ट बना दिया है। पाठकों को यह कृति निश्चित ही धर्मवीर भारती पर लिखे गए एक रोचक उपन्यास सा आनंद देगी।
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