‘पूरब का आक्सफोर्ड’ के नाम से विख्यात इलाहाबाद विश्वविद्यालय किसी जमाने में अफसर पैदा करने की फैक्ट्री माना जाता था। उन दिनों न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार मध्यप्रदेश और आज के उत्तराखण्ड तक के गाँवों-कस्बों से सतुआ-पिसान की गठरी बाँधे आँखों में अफसर बनने का सपना लिए हजारों लड़के हर साल इस शहर की गोद में आ गिरते थे। तीन दिशाओं से नदियों से घिरे तीन नदियों के संगम वाले इस शहर की आबोहवा भी कुछ खास है। इस आबोहवा को झेल कर सकुशल निकल जाना सभी के वश की बात नहीं होती है। अभिवावकों के नियंत्रण से निकल कर गाँवों और छोटे कस्बों से आने वाले लड़को को इलाहाबादी हवा बहुत तेज उड़ाती है। बहुत सारे लड़के उस हवा में उड़ कर कटी पतंग हो जाया करते हैं। फिर तो वे इस बुरी तरह धड़ाम होते हैं कि न तो घर के रह जाते हैं और न ही घाट के। डीहबाबा ऐसे ही एक होनहार लड़के के फिसलन और बरबादी की कहानी है।
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