Dhukhant


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About The Book

मानव जाति के कल्याण के लिए मनुष्य का सुखी रहना अत्यन्त आवश्यक है। मानव अपने जीवन काल में दुःख से बहुत दुखी रहता है जिसे वह कई बार सहन करने में अपने आपको असमर्थ पाता है। इस दुःख को किस प्रकार से दूर किया जाये जीवन जीने की कला को व्यक्ति में कैसे विकसित किया जाये यह एक विचारणीय प्रश्न था। दुःख को दूर करने के लिए किस प्रकार के नियमों पंचशीलों सदाचार परमिताओं अष्टांगिक मार्ग का पालन किस प्रकार से करना चाहिए यह सीखना अत्यन्त आवश्यक है। किसी भी प्रकार की शिक्षा बिना अभ्यास और शिक्षण के नियमों के पालन के बिना शिक्षा का फल प्राप्त नहीं किया जा सकता है। किसी भी प्रकार की सफलता के लिए ‘कर्म’ ही सर्वश्रेष्ठ है अर्थात कर्म करने पर ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है इसीलिए मनुष्य पहले स्वयं सुखी होने का संकल्प लेकर शिक्षण प्राप्त करें अर्थात् ‘अप्प दीपो भव!’ अपने दीपक स्वयं बनो आपका कल्याण होने पर दूसरे व्यक्तियों को केवल रास्ता बता सकता है कर्म तो उसे स्वयं ही करना पडे़गा तभी व्यक्ति सुख को प्राप्त कर सकता है।
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