कविता में समावेशन एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति रही है और उसने विमर्शों को भी मंच दिया है। स्थानीयता उसमें न सिर्फ प्रमुख है वरन् वैश्विक होने का माध्यम भी है। हिंदी कविता के पाठक महसूस करेंगे कि पप्रनाभ गौतम ने अपनी कविताओं के माध्यम से न सिर्फ बेहतर ढंग से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है वरन् उस परम्परा को ढंग से आगे भी बढ़ाया है। उनके जन्म और लालन-पालन के स्थान के उपरांत उनके कार्य के स्थलों ने भी इसमें योग दिया है। यह सभी अंचल जीवन की कठिन परिस्थितियों के साथ रचनाकार के सामने भी चुनौतियाँ ऽड़ी करते हैं और रचना के लिए प्रेरित करते हैं।... ...वे कविता में सौंदर्य रचते से लगते हैं। पद्मनाभ ने कविता में यह पड़ाव स्वयं अर्जित किया है और उसकी सीढ़ी भी वे ही बना रहे हैं। वे अपने पहले कविता संग्रह के साथ ही सशक्त और महत्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में सामने आते हैं।’'' -डॉ. संजय अलंग
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