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Description
Author
प्रेम बिलकुल अनूठी बात है उसका बुद्धि से कोई संबंध नहीं है। प्रेम का विचार से कोई संबंध नहीं। जैसा ध्यान निर्विचार है वैसा ही प्रेम निर्विचार है। और जैसे ध्यान बुद्धि से नहीं सम्हाला जा सकता वैसे ही प्रेम भी बुद्धि से नहीं सम्हाला जा सकता।ध्यान और प्रेम करीब-करीब एक ही अनुभव के दो नाम हैं।