सद्गुरु मिले तो पाइये भक्ति मुक्ति भंडार।<br>और दादू कहते हैं भक्ति पा ली तो मुक्ति पा ली। भक्त के लिए प्रेमी के लिए मुक्ति की कोई आकांक्षा ही नहीं है। वह कहता है प्रेम मिल गया परमात्मा का। बरस गया उसका मेघ ऊपर। हो गये उसके स्नेह से सिक्त-पा लिया सब-भक्ति भंडार। भक्त मोक्ष की आकांक्षा नहीं करता।<br>"दादू सहजै देखिये साहिब का दीदार।"<br>दादू कहते हैं कोई मुक्ति की जरूरत नहीं। बस इतना काफी है कि तेरे - दर्शन हो जाएं। आंखें तुझे देख लें बस! हृदय तुझे पहचान ले बस! चरण तेरे नृत्य से भर जाएं बस!<br>तुम अपने भीतर भी उसी को देखते हो बाहर भी उसी को देखते हो। मित्र में भी वही शत्रु में भी वही। जीवन में भी वही मृत्यु में भी वही। जब वही द्य बचा तो किसको मुक्त होना है और किससे मुक्त होना है? सारे बंधन गिर गये। फिर तो बंधन भी मुक्ति है। फिर तो बंधन में भी मोक्ष है। अगर द्य परमात्मा ही बांध रहा है तो जल्दी भी क्या है छूटने की? अगर वही बंधन बना है तो धन्य भाग!
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