Diary of an Eye Surgeon: My Experiences in India America and Australia

About The Book

नेत्र मानव शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक पांच सैकण्ड में एक वयस्क व्यक्ति एवं प्रत्येक मिनट में एक बच्चा अँधता से ग्रसित होता है। अमेरिका में किए गए प्रिवेंट ब्लाइंडनेस सर्वे के अनुसार अँधता (ब्लाइँडनेस) कैंसर और हृदय रोग के बाद भय का तीसरा सबसे प्रमुख कारण है। विश्वभर में 4.3 करोड़ व्यक्ति अँधता के अभिशाप से ग्रसित है जिनमें एक करोड़ 80 लाख रोगी भारत में निवास करते है। लगभग 75 प्रतिशत अँधता से पीड़ित नेत्र रोगियों की दृष्टि उपचार द्वारा पुनः लौटाई जा सकती है। ‘एक आई सर्जन की डायरीः भारत अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया में मेरे अनुभव’ नामक पुस्तक डॉ. सुरेश पाण्डेय द्वारा नेत्र सर्जन बनकर उपचार योग्य अँधता के उन्मूलन हेतु उल्लेखनीय जीवन यात्रा का विस्तृत विवरण है। डॉ. पाण्डेय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित नेत्र सर्जन होने के साथ-साथ एक लेखक मोटिवेशनल स्पीकर और साइक्लिस्ट है। उन्होंने दृष्टि बहाल करने वाली आँख की सर्जरी के माध्यम से लाखों रोगियों के जीवन में उजियारा भरा है। आत्मकथा की शुरूआत राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले रावतभाटा तहसील में स्थित छोटे से गाँव ‘मोहना’ से होती है जहाँ अगस्त 1968 में डॉ. सुरेश पाण्डेय का जन्म हुआ। मोहना में लालटेन की मंद रोशनी में अध्ययन करते हुए मार्ग में आने वाली हर कठिनतम परिस्थिति का मुकाबला करते हुए उन्होंने अपने दिवंगत दादाजी स्वतंत्रता सेनानी आँखों के डॉक्टर कामता प्रसाद पाण्डेय की तरह एक नेत्र सर्जन बनने का सपना देखा। दादाजी ने 1937 में किशनलाल जालान आई हॉस्पिटल भिवानी (हरियाणा) में रहकर मोतियाबिन्द ऑपरेशन एवं अन्य नेत्र ऑपरेशन की विशेष ट्रेनिंग डॉ. पी.डी. गिरिधर से लेकर आँखों के डॉक्टर के रूप में कार्य करना आरंभ किया। ‘बागी बलिया आंदोलन’के बाद दादाजी का बलिया में नेत्र विशेषज्ञ के रूप में काम करना असंभव हो चुका था। दादाजी ने अँधता के विरू( जंग जारी रखने के लिए वर्ष 1944 में बलिया छोड़ने का निश्चय किया और ग्यारह सौ किलोमीटर दूर राजस्थान के मोहना नामक गाँव में नेत्र सर्जन के रूप कार्य करते हुए अँधेरी दुनिया को रोशन करने के महत्वपूर्ण कार्य की शुरूआत की। डॉ. सुरेश पाण्डेय ने दादाजी के पदचिन्हों पर चलते हुए आँखों का डॉक्टर बनकर लाखों दृष्टि- बाधित रोगियों की अँधेरी दुनिया फिर से रोशन करने के सपने को साकार करने के लिए कभी हार नहीं मानते हुए अनवरत प्रयास किया। बेचलर ऑफ साइंस (बी.एससी.) प्रथम वर्ष में उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद बिना किसी कोचिंग के वे अपने पहले प्रयास में प्री-मेडिकल टेस्ट (पी.एम.टी.) में चयनित हुए और जबलपुर के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। वहाँ होने वाली रैगिंग एवं अन्य कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए डॉ. पाण्डेय ने स्वयं को शर्मीले व्यक्ति से एक आत्मविश्वासी व्यक्ति में बदला जिससे वे दुनिया की कठिन परिस्थितियों का सामना कर सकें। मेडिकल ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने देश के सुप्रसिद्ध( मेडिकल संस्थान पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटड्ढूट चण्डीगढ़ से नेत्र चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई पूर्ण की। डॉ. पाण्डेय ने सात वर्षों तक अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया में रहकर नेत्र शल्य चिकित्सा एवं शोधकार्य में निपुणता हासिल की। ‘एक आई सर्जन की डायरी’नामक पुस्तक में डॉ. पाण्डेय अपनी मेडिकल स्टूडेंट के रूप में यात्रा ऑकुलर माइक्रो-सर्जरी की कला सीखने में मार्ग में आई चुनौतियों एवं कठिनाइयों को पाठकों से साझा करते हैं। ऑस्ट्रेलिया से भारत लौटकर मेडिकल आंतरप्रेन्योरशिप की दिशा में कार्य करते हुए कोटा में सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेजर सेंटर नामक चिकित्सकीय उद्यम शुरू करने के लिए उनके जुनून और जज्बे की कहानी साझा करते हैं जिसके माध्यम से उन्होंने अपनी नेत्र चिकित्सक जीवन संगिनी डॉ. विदुषी शर्मा एवं समस्त टीम के साथ मिलकर एक लाख से अधिक सफल नेत्र ऑपरेशन सम्पन्न किए एवं लगभग 15 लाख नेत्र रोगियों का सफल उपचार किया। इस पुस्तक में डॉ. सुरेश पाण्डेय ने भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों में विश्व के सुप्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञों के साथ कार्य करने के अपने अनुभव एवं संस्मरण लिखे हैं। ‘शिक्षा की काशी’कोटा में नेत्र सर्जन के रूप में कार्य करते हुए डॉ. पाण्डेय को हजारों कोचिंग विद्यार्थियों से संवाद करने का सुअवसर मिला हैं और उन्होंनें विद्यार्थियों को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया है। डॉ. पाण्डेय द्वारा लिखित यह पुस्तक हमें फोकस दृढ़ता और आध्यात्मिकता के पाठों से समृद्ध उनकी जीवन यात्रा के उतार.चढ़ाव का विस्तृत विवरण प्रदान करती है। ‘मोहना से मंजिल तक’ पँहुचने की मार्मिक कहानी के अनुसार मोहना गाँव में जन्मे एक बालक ने अपने जीवन में नेत्र चिकित्सक बनने का संकल्प लेकर मार्ग में आने वाली प्रत्येक कठिनाई से संघर्ष किया लालटेन की मंद रोशनी में अध्ययन कर ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ नामक सूत्र के अनुसार भारत के लाखों रोगियों के जीवन से अंधकार मिटाने का संकल्प लिया। जीवन की अनेक कष्टदायी चुनौतियों के बावजूद सफल होने की चाहत रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह एक प्रेरणादायक पुस्तक है जो इस कहावत को साबित करती हैः जहाँ चाह होती है वहाँ राह होती है।
Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
downArrow

Details


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE