मन के विस्तृत फलक पर कौन भाव कब आकर अपना डेरा कर ले कौन जानता है।जिंदगी की तमाम सुलझीअनसुलझी बातेंयादें मनुष्य को विचारमग्न करती हैं।आज के बदलते युगबोध में प्रेम व संवेदना दोनों क्षणिक होकर कहीं खो से जाते हैं।समाज के बदलते विविध रूपों में प्रेम अपना स्थान सदैव कायम रख पाया है।जो बातें हम सीधेसरल शब्दों में कह लेते हैं उसका भाव सुनने या देखने वाले व्यक्ति को आसानी से समझ में आता है। शब्दों का चयन भाव व विचार लेखक के अपने निजी अनुभव व समाज में देखेजिए गए परिस्थितियों के द्वारा मानस पटल पर निर्मित हुए हैं जो संकलित होकर आज पुस्तक रूप में आपके सामने है।'दिल बंजारा' मूलतः प्रेम व वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों का कविता संग्रह है जिसमें शेर मुक्तक व गज़लों के द्वारा अपने विचारों व भावों को व्यक्त किया गया है।
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