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About The Book
Description
Author
दिल पत्थर में नायक-नायिका का नाम नहीं है उसकी जरूरत भी नहीं है। नायिका जल्द एक बेड नम्बर में तब्दील हो जाती है नायक अस्पताल के बाहर पार्क में पत्थर की बेंच में। सुहागरात मनने से पहले ही दोनों के बीच कोरोना आ जाता है। हनीमून के लिए बचाये पैसे अस्पताल के दाखिले में गर्क हो जाते हैं। अस्पताल का नजारा वही है। वहाँ आपदा का व्यापार चल रहा है। एजेंट बाकायदा विजिटिंग कार्ड पर मोबाइल नंबर सहित रेट लिख देते हैं बिस्तर की दर ऑक्सिजन की दर कफन दफन की दर। नायक और नायिका के बीच महज एक नर्स का संबंध सूत्र है। अंत आते तक नायिका डॉक्टर और नर्स सब कोरोना की चपेट में खत्म हो जाते हैं। सर्व विनाश की यह दिलतोड़ू दास्तान पढ़ते-पढ़ते अगर आपका ऑक्सीजन लेवल डूब जाय तो हैरान न हों। बकौल मो. आरिफ-‘‘अफसाना कितना भी काल्पनिक हो उसमें सच्चाई अवश्य होती है।’’ आरिफ के पास अफसाना बनाने का हुनर बेमिसाल है। ममता कालिया