हिन्दी के ज्यादातर पत्रकारों के यात्रा-वृत्तान्त आम तौर पर रपट होते हैं। उनके केन्द्र में सिर्फ तथ्य और विवरण होते हैं। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार और सांसद हरिवंश के इन यात्रा-विवरणों में तथ्यों के साथ-साथ संवेदना और मानवीय प्रसंगों को भी बखूबी पिरोया गया है। इसी के चलते उनकी ये पत्रकारीय रपटें साहित्यिक आस्वाद से युक्त हो जाती हैं। यात्रा के दौरान उनके मन में एक अन्तर्यात्रा भी समानान्तर चलती रहती है विदेश उन्हें अपने देश को और सतर्क निगाह से देखने को प्रेरित करता है। वे सिर्फ पर्यटक की तरह नहीं एक प्रबुद्ध विचारक की तरह दुनिया को देखने लगते हैं। उनके इन यात्रा संस्मरणों में सतत एक बेचैनी दिखाई देती है। साथ ही उनका पत्रकार भी अपनी वस्तुगतता के साथ लगातार उनके यात्री के साथ रहता है। उनका प्रयास होता है कि वे जहाँ भी जाएँ वहाँ के यथार्थ को इस तरह प्रस्तुत करें जिससे समय और समाज की समझ को विस्तार मिले—उनकी अपनी समझ भी खुले और पाठक की भी। यही विशेषता इस पुस्तक को एक साहित्यिक कृति बनाती है। आप इन यात्रा विवरणों को पढ़कर रोमांचित भी होंगे उत्तेजित भी होंगे और देश तथा दुनिया के विषय में सोचने के लिए व्याकुल भी होंगे।
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